Tuesday, November 4, 2008

सूरत टू वडोदरा

सूरत टू वडोदरा
दिन शुक्रवार (२९/१०/२००८)
मैंने अपने सामने बैठे हुए राकेश जी से पूछा
मैं : ये सूरत कितने बजे तक आ जाएगा । राकेश जी : बस यही कोई आधे घंटे का समय लगेगा । इतना कह कर वो अपना सामान ठीक करने लगे , ट्रेन बड़ी तेज़ी से सूरत की ओर दौड़ती चली जा रही थी और मेरी भी बेचैनी बाद रही थी । मैंने अपने मोबाइल मे देखा रात के ९ बज रहे थे , मैं ये सोच रहा था कि सूरत से बडोदा जाने के लिए पता नही कितनी रात मे ट्रेन मिलेगी और मैं न जाने कब बडोदा पहुंचुंगारास्ता भी अनजान था । यही सोचता सोचता मैं ट्रेन कि खिड़की के बहार देखने कि कोशिश कर रहा था , वैसे भी ऐसी से बहार रात मे देखने मे ज़्यादा कोशिश करनी पड़ती है तभी राकेश जी कि आवाज़ मेरे कानो मे पड़ी मनीष जी उधना स्टेशन आ गया है अब आप भी अपना सामान रख लीजिये। मैं: अरे क्या राकेश जी पूरा २७ घंटा हो गया ट्रेन कि सवारी करते करते अभी तक सफर ख़तम नही हुआ। राकेश जी : हाँ मनीष जी आपके साथ तो अच्छा लगा आप नही होते तो बोरियत हो जाती । मैं: अरे कहाँ आपके साथ तो भाभी जी है और आपका बेटा भी है , आप लोग नही होते तो मैं बोर हो जाता वैसे भी आज ट्रेन मे कितने कम लोग हैं। राकेश जी: चलिए अच्छा लगा आप से मिलकर । मैं: मुझे भी । तभी भाभी जी जो अब तक अपने बेटे को सुलाने कि कोशिश कर रहीं थी बोलीं पता नही कब अब मुलाक़ात होगी ................. वैसे ट्रेन का सफर इस मामले मे अच्छा होता है कि कुछ अच्छे दोस्त बन जाते है भले ही केवल कुछ घंटों के लिए। इतना सोच कर मैं तो आराम से बैठ गया लास्ट स्टाप था तो सोचा की आराम सी ही उतरा जाएगा जल्दी किस बात की वैसे भी आराम से बड़कर क्या है ।
कुछ देर बाद मैं भी स्टेशन पर उतर गया गाड़ी प्लेट फॉर्म नम्बर ४ पर रुकी थी पास ही खड़े एक भाई साहब से १ नम्बर प्लेट फॉर्म का पता पूछ कर मैं उस ओर चल दिया ।
प्लेट फॉर्म नम्बर १ पर पहुच कर मैंने वही बुक स्टाल वाले से पूछातो उसने बताया की बस स्टाप पास मे ही है । मैं यह सोच रहा था की बस से बडोदा चला जाऊँ कम से कम बैठने को तो जगह मिल जायेगी । बस स्टाप रेलवे स्टेशन से बस कुछ दूर पर ही था , मैं चल कर वह तक पहुच गया ।
बस स्टाप पर तो बहुत जायद भीड़ थी किसी तरह मैं वडोदरा वाले प्लेट फॉर्म पर पहुँचा तो देखा की वहां वडोदरा जाने वाली कई बसे खड़ी थी । मन ही मन मैं खुश हुआ की रात १२ बजे तक तो वडोदरा पहुच ही जाऊंगा पर जल्द ही पहुच जाऊंगा , पर ये खुशी ज्यादा देर तक नही रही । जल्द ही मुझे पता चल गया की अगर वडोदरा तक बस से जाना है तो पूरे रास्ते खड़े हो कर जाना पड़ेगा । तब तक मैं एक बस मे चढ़ चुका था जैसे ही बस आगे बढ़ी मैं बस से उतर गया ।
रात ९:३८ मिनट मैं दोबारा सूरत रेलवे स्टेशन पर आ चुका था ।
और रेलवे उद्घोसना हुई कि कछ एक्सप्रेस प्लेटफोर्म नम्बर एक पर खड़ी है , मैंने देखा तो टिकेट कि लाइन बहुत लम्बी थी शायद इतनी कि एक घंटे से पहले टिकेट नही मिलती और मैं दौड़ कर प्लेटफोर्म नम्बर एक पर चला गया जैसे ही मैं प्लेटफॉर्म पर पहुँचा मैंने देखा कि कछ एक्सप्रेस ठीक समय से आ चुकी थी और मेरे लिए शायद ये पाहली बार हुआ था कि कोई ट्रेन सही टाइम पर मिली हो ।
मैंने जल्दी जल्दी decide किया कि मैं ट्रेन मे चढ़ जाता हूँ और ट्रेन के अंदर ही टिकेट बनवा लूँगा। और मैं ट्रेन जनरल डिब्बा ढूढ़ते हुए वह तक पंहुचा , पर डिब्बा तियो पुरी तरह से बंद था और तो और कोई खोलने को भी तैयार नही था, मजबूरन मुझे स्लीपर क्लास कि तरफ़ बढ़ना पड़ा ।
स्लीपर क्लास कोच नम्बर ८ के बहार ।
दो आरपीयफ (RPF) के जवान खड़े थे जिसमे से एक थोड़ा ज्यादा उम्र का था ( यही कोई ५५ साल का) और दूसरा अभी जवान ( ४० साल के आस पास) नज़र आ रहा था ।
मैं जैसे ही कोच की तरफ़ बढ़ा।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : क्या बे कहाँ जा रहा है ।
मैं: सर जी मुझे वडोदरा जाना है ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : टिकट दिखा ।
मैंने अपनी जेब से वाराणसी टू सूरत ताप्ती गंगा एक्सप्रेस ऐ सी क्लास ३ की टिकट निकला कर दिखाई ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) :( मुझसे टिकट छिनते हुए ) ये तो सूरत तक की टिकट है । सेल मैं तुझको एलाऊ नही करूँगा ।
मैं: सर जी प्लीज़ जाने दो इसके बाद कोई ट्रेन नही है ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : चल दूर हट । इसमे मत जा ।
मैं: देख लो सर जी अगर हो सके तो जाने दो ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : साहब ने मन किया तो नही जाने का ।
मैं रुक गया और ट्रेन चल पड़ी , अभी ट्रेन ने स्पीड भी नही पकडी थी कि तभी कम उम्र वाले RPF के जवान ने मुझे इशारे से ट्रेन मे चड़ने को बोला । और मैंने दौड़ कर ट्रेन पकड़ ली ।
ट्रेन पर चढाते ही उसने बोला आजा मैं देख लूँगा। मैंने उसको प्यार से धन्यवाद् बोला । मुझे इतने तो पता था कि टिकट चेक करने का हक इनका तो नही है पर कुछ कर भी तो नही सकता था , मेरी समझ से आजकल तो भाई चोर और पुलिस मौसेरे भाई हैं। इनसे जितना बचसका जाए उतना ही अच्छा है ।
दिवाली के बाद ट्रेनों मे बहुत भीड़ हो जाती है , ये तो सबको पता होता है पर क्या किया जाए जरुरी हो सफर करना ही पढता है । मेरे साथ भी यही हुआ था ऊपर से बिल्कुल नया रास्ता कुछ जानकारी भी नही थी ।
मैं कोच मे बहार कि तरफ़ टॉयलेट के पास जहाँ पहले से ही लोग चादर बीचा कर बैठे हुए थे बैठ गया लोग देखने मे भले लग रहे थे सबके पास वेटिंग टिकट थी और मेरे पास कोई टिकट नही । तभी एक मिलिट्री वाले ने मुझसे बोला ।
मिलिट्री अंकल: कहाँ जाना है ।
मैं: वडोदरा
मिलिट्री अंकल: वेटिंग टिकट है
मैं: नही मेरे पास सूरत तक कि टिकट है आगे कि ट्रेन मे बनवा लूँगा ।
मिलिट्री अंकल: कोई जरुरत नही पड़ेगी । टी टी वडोदरा तक नही आएगा ।
मैं: ओके ।
तभी सामने से
आंटी : आप तो ताप्ती गंगा मे थे न ।
मैं : हाँ ।
आंटी: हम भी वाराणसी से आ रहे है , आपको मैंने वह देखा था ।
मैं: ( उनके बड़े से परिवार को देखते हुए बोला ) : अच्छा ।
इसके बाद वो उनके हसबैंड से कुछ बताने लगीं।
आंटी जी के परिवार मे दो मेल मेम्बर , दो फीमेल मेंबर और चार बच्चे थे , उनके अलावा तीन परिवार और वही पर आराम फार्म रहे थे । उनमे से एक अंकल जी उनकी बेटी के लिए कोच के अन्दर बार बार आ जा कर बैठने का प्रबंध कर रहे थे । और वो लड़की यहीं लड़को के बीच रहने का प्रयास कर रही थी और अंततः अंकल हार गए और वो लड़की जीत गई, आजकल के माँ बाप बच्चो से अक्सर हार ही जाते है । लड़की यूँ ही इधर उधर देख रही थी तभी जो का झटका लगा और वो मिलिट्री अंकल पर गिर गई । अब तो उसके फादर से नही रहा गया और उन्होंने जबरदस्ती उसको नीचे बैठने को बोल दिया और वो उसी भीड़ मे बैठ गई , पर शायद उसको अच्छा नही लग रहा था अब लड़को को देखने के लिए जो उसको सर उठाना पड़ रहा था ।
खैर वहीँ दूसरी लड़की भी बैठी थी और दोनों ने बात करनी शुरू कर दी , और अंकल ( लड़की के पापा ) को कुछ शान्ति मिली।
बगल वाले डिब्बे मे बहुत सारे स्टूडेंट्स थे और हर नवजवान ग्रुप कि तरह से शोर मचा रहे थे और वहीँ लेती एक बूढी आंटी उनको डांटने मे लगी थी । मैंने जब उधर देखा तो आंटी ने मेरी ओर देखते हुए बोला इनको देखो सोने नही दे रहे हैं । मेरे पास इस बात कोअ कोई जवाब नही था और मैं पुनः अपने ग्रुप जो आधे से ज्यादा ज़मीन पर बैठ अता उस ओर घूम गया ।
तभी मैंने देखा कि कुछ लोग हमरी तरफ़ आ रहे थे और उनके पीछे वही दो RPF के जवान थे , उनमे से कम उम्र वाले ने मुझे घूरा तो ज्यादा उम्र वाला बोल उठा ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : क्या हुआ ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : कुछ नही साहब ये वही है जिसके पास टिकट नही है ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : बुला साले को इधर ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : चलो साहब बुला रहे हैं ।
और दोनों चल पड़े , उनके साथ जितने भी लोग थे या तो वो बिना टिकट थे या उनका रेसेवेशन नही था ।
मैं: ( नीचे देखते हुए) आता हूँ।
मिलिट्री अंकल : साले पैसे वसूलेंगे।
तभी मैंने कुछ हिज़डो को आते देखा , ये हिज़दे भी न जाने क्यों ट्रेन मे ही वसूली करने चले आते हैं?
एक हिज़डा ( मुझे से) : ऐ राजा कुछ देना ।
मैं इनका इतजाम पहले से ही कर के चलता हूँ पाँच का नोट ऊपर वाली जेब मे ।
मैंने पाँच को नोट उनकी तरफ़ बढाया पर वो इतने पर नही मन और कस के मेरे गालों को खीच लिया । मुझे इस बात का एहसास लंबे समय तक गलों मे दर्द के साथ होता रहा ।
हिज़दों ने खैर सब से कुछ न कुछ वसूली की और चले गए, उसके बाद मेरे साथ मे बैठे हुए बैसहब मे कुछ पुराणी कहानी सुनानी सुरु की । कि एक बार कैसे उनके दोस्तों ने और उन्होंने मिलकर हिज़डो को परेशां कर लिया था ।
ऐसा खैर हमेशा ही होता है कि कोई न कोई हिज़डो के जाने के बाद ही अपनी मर्दानगी दिखता है ।
मैंने आपनी पर्स से सारे पैसे निकले और अलग कर के रख लिए , अब पर्स मे केवल १७० रुपये बचे थे । मैंने मिलिट्री अंकल को मेरा सामान देखने को बोला और RPF वालों से मिलने चल दिया ।
अब हम वहा थे जहाँ से स्लीपर कोच ख़तम होता था और आगे का रास्ता बंद था ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : क्यों चढा तूमैंने मन किया था न।
मैं: वो मैं सर जी से पूछ कर चढा था ( दूसरे वाले RPF के जवान कि तरफ़ मैं इशरा करते हुए बोला)
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : वो कौन हैं? मुझ से पूछना था न ।
मैं: सॉरी सर जी ।
क्या करता जब काम हो तो गधे को भी सर पर चढाना पड़ता है , यही सोच कर मैं सर जी सर जी बोले जा रहा था और वो मुझ पर चढाते जा रहा था ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : साली आगे भरूच मे तेरे को थाने मे दे दूंगा तभी साले समझ आएगी ।
R P F का जवान (४० वर्स ) : जाने दो साहब बच्चा है।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : क्या बच्चा है । एक तो बिना टिकट है ऊपर से स्लीपर मे चल रहा है ।
मेरी तरफ़ घूरते हुए वो बोला ..........
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : एक झापड़ मरूँगा दिमाग सही हो जाएगा और ट्रेन का सफर हमेश एके लिए भूल जाएगा ।
अब तो मेरा खून खौल रहा था , मन मे आ रहा था साले को ट्रेन से धकेल दूँ , मैं इतनी देर से सर जी सर जी बोले जा रहा था और वो मुझे मरने कि बात करने लगा था । खैर मैंने खुद को बहुत कंट्रोल किया , और कुछ नही बोला ।
मैं: सर जी वैसे तो मेरे पास सूरत तक का टिकट है , और मैं टी टी से मिलकर आगे बढ़वा लूँगा , रेलवे मे तो ये नियम है ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : साले हमको नियम समझाता है । कहा है तेरा सामन ?
मैं: सर जो वो तो वहा रखा है (कोच के दूसरी साइड इशारा करते हुए मैंने बोला ) ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : साले चोरी कर लेगा यहाँ तो कौन जवाब देगा , तेरे जैसे बहुत चोर देखें है हमने । अच्छे अच्छे कपड़े पहन कर चोरी करती है ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) ( दूसरे RPF वाले से ) : दो डंडे दो सही हो जाएगा ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : जा जाकर तेरा सामान ले कर आ ।
और मैं उधर से चल दिया , अब उनको इतना विश्वास था कि मैं सामान ले कर ज़रूर आऊंगा । और मैं भी समझ चुका था कि इनको रुपये चाहिए थे ।
मैंने तय कर लिया था कि मैं टी टी को मिलकर टिकट बनवा लूँगा पर इनको पैसा नही दूंगा । मैंने मिलिट्री अंकल के पास जा कर अपना सामन उठाया और उनको बोला मैं टी टी के पास जा रहा हूँ और टी टी को खोजने लगा । अंत मे मुझे टी टी स्लीपर कोच १ पर मिला ।
मैं बड़ी ही शालीनता से टी टी को .................
मैं: सर मेरे पास ये टिकट है ( अपना सूरत तक का टिकट दिखाते हुए ) आप प्लीज़ इसको वडोदरा तक बढ़ा दीजिए ।
टी टी : पर क्यों?
मैं: सर जी मुझे वडोदरा तक जाना है ।
टी टी : पर ये तो ऐ सी का टिकट है , इसको नही बढ़ा सकता ऐ सी से ही बढेगा ।
मैं: तो मैं क्या करूँ।
टी टी : क्यों? क्या प्रॉब्लम है ।
मैं: वो कुछ RPF के जवान परेशां कर रहे है ।
टी टी : तुम्हारा सामान कहा है ।
मैं: सर बस इतना ही है ( समान कि तरफ़ इशारा करते हुए मैं बोला)
टी टी : तुम मेरे साथ आ जाओ , कोई कुछ नही बोलेगा।
मैं: ठीक है ।
टी टी : ऊपर जाकर सो जाओ ( उसने ऊपर कि बर्थ कि तरफ़ इशारे के के साथ बोला)
मैं: ओ के , पर मैं कैसे जनुगा कि वडोदरा आ गया ।
टी टी : मैं तुमको जगा लूँगा ।
मन ही मन मैं सोचने लगा कि टी टी कितने रुपये लेगा , और निष्कर्ष निकला कि १०० रुपए तो जरुर ही लेगा।
अब ट्रेन भरूच स्टेशन तक पहुँच चुकी थी , ट्रेन स्टेशन पर खड़ी ही थी मुझे कुछ जनि पहचानी आवाज़ सुनाई दी । उन्ही RPF के जवानों की ।
एक जवान दूसरे से (शायद कम उम्र वाला ज्यादा उम्र वाले से ) : लगता है लड़का उतर गया ।
दूसरा : हाँ उतर ही गया होगा ।
पहला : ज्यादा डरा दिया लगता है उसको ।
दूसरा : जाने दो सर कोई और मिल जाएगा ।
तभी टी टी जी भी वहीँ आ गए , और मैंने ऊपर से चुपके से नीचे देखा ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : साहब ( टी टी से ) एक लड़का था बिना टिकट लगता है उतर गया ।
टी टी : अच्छा ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : हम यहीं बैठ जाए।
टी टी : हाँ बैठ जाओ , पर एक सीट छोड़ देना वडोदरा से नया टी टी आएगा ।
R P F का जवान ( 40 वर्स ) : ठीक है वो तो छोड़ देंगे ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : हाँ एक सीट छोड़ देंगे ।
और इसके बाद टी टी कहीं चला गया । तभी वहां एक बुड्डा आदमी आ गया ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : टिकट है ।
बुड्ढा : नही साहब बस यहीं आनद तक जाना है ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : तो क्या ऐसे ही जाओगे बाबा ।
बुड्ढा : नही साहब आप जैसे कुछ अच्छे लोग मिल गए है साथ मे चले जायेगे ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : चलो कुछ मेहनताना तो दे दो जाने का ।
बुड्ढा ( जेब से ५० की नोट निकलते हुए) : साहब बस यही है रख लो। आप जैसे देवता मिल जाते है तो काम हो जाता है ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : हम तो हैं ही जनता की सेवा के लिए ।
तभी टी टी भी आ गया और मुझे आवाज़ दी ।
टी टी : बेटा नीचे आ जाओ ।
मैं: वडोदरा आ गया क्या?
टी टी : हाँ बस आ ही गया ।
मैं: ओ के ।
और मैं नीचे आ गया , और मेरे नीचे उतरने के साथ ही ...............
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : सर यही लड़का है बिना टिकट ।
टी टी ( झल्लाते हुए) : कौन कहता है ये बिना टिकट है , और तुम कौन होते हो टिकट देखने वाले ।
(मेरी तरफ़ देखते हुए टी टी ) बेटा बैठों तुम किसी से डरने की जरुरत नही है ।
और मैं उन दोनों RPF के जवानों के बीच मे बैठ गया ।
कुछ देर मे टी टी टॉयलेट चला गया और उन दोनों को मौका मिल गया।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) दूसरे से : सब तुम्हारी वजह से हुआ है कह था मत चड़ने दो इसको ।
R P F का जवान ( ४० वर्स ) : हाँ , ..... ( मेरी ओर देखते हुए) कितना दिया है टी टी को ।
मैं: कुछ नही ।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : कुछ तो दिया होगा या तुम्हारे गाँव का है। या लालू है जिसको चाहेगा उसको बैठायेगा ।

मैं: शायद अच्छे आदमी है।
R P F का जवान ( ५५ वर्स ) : हाँ भाई कुछ दे दिया होगा तुमने तो अच्छे है ही।
तब तक टी टी जी भी आ गए।
टी टी : बेटा वो मेरा बैग उधना और मेरे साथ आ जाओ वडोदरा आ गया ।
ट्रेन ने स्पीड कम कर दी थी , और धीरे धीरे वडोदरा स्टेशन से अंग्रेजी मे एनौन्सेमेंट भी सुनाई देनी लगी थी कि कछ एक्सप्रेस प्लेट फॉर्म नम्बर ३ पर आ चुकी है ।
हम दोनों ( मैं और टी टी जी ) साथ साथ ट्रेन से उतरे और उसके बाद...
टी टी जी : अब तुम बहार कैसे जाओगे, चलो मैं तुम्हे बहार तक छोड़ देता हूँ।
मैं: धन्यवाद् ।
और हम दोनों सीढियों से ऊपर चढाने लगे।
मैं: सर आपका नाम क्या है ।
टी टी जी : क्या करोगे नाम जान कर ।
मैं: सर थैंक यू तो बोल दूँ।
टी टी जी : उसके लिए नाम कि क्या जरुरत है । क्या नाम के आगे पीछे ठनक यू लगना है।
मैं: नही ।
टी टी जी : तो ऐसे ही बोल दो ।
और मैंने उनको थैंक यू बोला और उन्होंने मुझे स्टेशन के बहार तक छोड़ दिया ।
कितना अजीब सा सफर था ये जहा दुनिया का हर रंग देखने को मिला , एक वो टी टी जी भी थे जिन्होंने निःस्वार्थ भावः से मेरी मदद कि और एक वो देश के जवान भी थे जो ख़ुद के जेबे भरने के लिए उनका कर्तव्य भूल गए थे ।
चलते चलते मैंने वडोदरा स्टेशन को टाटा किया और ऊपर वाले का शुकिया ।
और ऑटो पकड़ कर मैं बी ३२, अरविन्द सोसाइटी को निकला पड़ा............

Tuesday, October 14, 2008

हिम्मत है तो रोक लो




सोनिया जी की ललकार "रोक सको तो रोक लो " से मैं बिल्कुल सहमत हूँ । ईश्वरभी उनका कभी साथ नही देता जो ग़लत होते हैं, सोनिया जी मे सच्चाई झलकती है । और यह भी बिल्कुल सत्य है की मैं कांग्रेस का बहुत बड़ा समर्थक हूँ , मैं सब कुछ बिल्कुल अपने नज़रिए से ही लिखूंगा । यह भी निश्चित है कि बहुत सरे ऐसे लोग भी होंगे जो मेरी बातों से असहमत होंगे ।

दैनिक जागरण कि ख़बर के अनुसार -
सोनिया जी मंगलवार को दिल्ली से निजी विमान के जरिए रायबरेली के फुर्सतगंज पहुंची थीं। रास्ते में उन्होंने लखनऊ जाने से परहेज किया। लालगंज में रेलवे स्टेशन के निकट पत्रकारों से भी बातचीत की। उन्होंने मुख्यमंत्री मायावती पर विकास योजनाओं पर पानी फेरने का आरोप लगाया।


हमारे रायबरेली के लोग न जाने कितने समय से इस रेल कोच फैक्ट्री कि आशा मे थे और पतानाही मुख्यमंत्री जी क्या सूझी कि भूमि पूजन के मटर कुछ ही दिन पहले ये भाखेदा खड़ा कर दिया । हो सकता है वो इस बात का बदला ले रहीं कि पिछले लोक सभा चुनाओ मे उनकी पार्टी के नेता के जमानत जप्त होने का बदला ले रहीं हों , वैसे कई कारण हो सकते है इस बदले के अब असल तो कारण माननीय मुख्यमंत्री जी जाने । यह तो पुरी तरीके से सत्य है कि रायबरेली गाँधी परिवार कि कर्म भूमि है चाहें वो इंदिरा जी का जमाना , राजीव जी का समय या फिर आज सोनिया जी का वक्त , और आने वाले भविष्य मे राहुल और शायद उनकी अगली पीढी का । सच तो यह है कि हम रायबरेली वाले मैडम जी (जो प्यार से हर रायबरेली के गों वाला बोलता है ) को अपने परिवार का अटूट अंग मानते है फ़िर कोई अगर उनके साथ इस तरह कि हरकत करे तो कैसे चुप रह सकते है ।


अगर आपको कोई आपके घर जाने से रोके तो कैसा लगेगा , वो घर जिसको आपने अपनी मेहनत से बनाया हो कुछ ऐसा ही सोनिया जी के साथ हो रहा है । खैर हमे ये उम्मीद है कि इन बातों से सोनिया जी और राहुल जी के हौसले नही हिलने वाले है । इसका जवाब जरूर ही लोगों को जल्द मिलेगा।




Sunday, October 12, 2008

DD मतलब दूरदर्शन

RAMAYAN












DEKH BHAI DEKH








SALMA SULTANA DD NEWS READER

BINYAAD





YE JO HAI JINDAGI











HE MAN

दूदर्शन एक सोच और एक द्रिष्टी


आज जब मैंने अपना मेल बॉक्स खोला तो देखा कि एक forwaded मेल जो मेरे इन्बोक्स मे थी और जिसने मुझे दूरदर्शन के उन पुराने दिनों की याद दिला दी जब केवल दूरदर्शन ही टेलिविज़न मनोरंजन का एक मात्र साधन हुआ करता था ।
आज जब मैं उन पुराने दिनों कि याद करता हूँ तो बरबस ही मुझे अपने black&white टेलिविज़न की याद आ जाती है, जो अब न जाने कितने सालों से बिगडा पड़ा हुआ है और जिसे मेरे पिता जी बार बार बनवाने कि कोशिश करते है पर वो बन नही पता । सच मे दूरदर्शन और मेरे b&w टेलिविज़न से हमारी न जाने कितनी यादें जुड़ी है । मेरा , पापा और मम्मी का साथ बैठ कर टीवी देखना एक बड़ी अच्छी बात थी कि मुझे और पापा दोनों को भारत एक खोज बहुत पसंद था और पापा जी मुझे उनकी जानकारी भी सीरियल के साथ साथ दिया करते थे । आज मैं दूरदर्शन से जुड़ी हुई कुछ बातें आपको बताऊंगा उम्मीद है जरूर पसंद आएँगी ।

दूरदर्शन का प्रयोगात्मक प्रसारण दिल्ली में सितम्बर 1959 में एक छोटे से ट्रांसमीटर और एक अस्थायी स्टूडियो के साथ शुरू हुआ और यही से दूरदर्शन ने एक मामूली शुरुआत की थी और इसका नियमित दैनिक संचरण 1965 में ऑल इंडिया रेडियो के एक भाग के रूप में शुरू किया था। टेलिविज़न सेवा का विस्तार मुंबई ( तब का बॉम्बे) और अमृतसर मे किया गया सन् १९७२ मे किया गया । दूरदर्शन ने सन् १९७५ तक आपना दायरा भारत के ७ शहरों तक बढाया और देश का एक मात्र टीवी चैनल बना रहा । सन् १९७६ मे टीवी सेवा को रेडियो से अलग होना पड़ा अब आल इंडिया रेडियो और दूरदर्शन अलग अलग महानिदेशकों के प्रबंधन मे दिल्ली मे स्वतंत्र रूप से कार्य करने लगे । अंत में दूरदर्शन के एक राष्ट्रीय प्रसारक के रूप में अस्तित्व में आया। राष्ट्रीय कार्यक्रम १९८२ में शुरू की गई थी और उसी वर्ष में रंगीन टी वी भारतीय बाजार में १५ अगस्त १९८२ को आ गए । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी द्वारा दिए गए स्वतंत्रता दिवस के भाषण का सीधा प्रसारण पेश किया गया साथ ही साथ एशियाई खेलों का भी सीधा प्रसारण किया गया अब दूरदर्शन राष्ट्रीय चैनल बन चुका था।

इसके साथ ही हम ८० के दूरदर्शन उस दशक मे पहुँच गए है जहा दूरदर्शन ने दैनिक प्रसारित होने वाले कार्यक्रमों को शुरू किया । हम लोग (१९८४), बुनियाद ( १९८६-८७) और ये जो जिंदगी है जैसे कॉमेडी शो भी प्रसारित किए । सबसे पहले दैनिक कार्यक्रम हमलोग, बुनियाद और पौराणिक नाटक जैसे रामायण और महाभारत ने लाखों लोगों को दूरदर्शन का दीवाना बनाया। ये बातें सोचते सोचते मैं अपने बचपन मे चला जाता हूँ और बचपन की अटूट यादें जो दूरदर्शन के साथ जो जुड़ी हुई है मैंने सबसे पहले उनका उल्लेख करना चाहूँगा ।

दूरदर्शन हमारे जैसे बच्चों के लिए भी रोजाना मनोरंजन का साधन बन गया था spider- man और he man बच्चों के पसंदीदा कार्यक्रम रहे। सच दूरदर्शन से हमारे उम्र के लोगों की बहुत सी यादें जुड़ी है ।

दादा दादी की कहानियाँ , करमचंद, रंगोली, ब्योमकेश बक्षी , चित्रहार जैसे न जाने कितने बेहतरीन कार्यक्रम का प्रसारण दूरदर्शन ने किया है । मुझे आज भी याद है दूरदर्शन का पहला होर्रोर शो "किले का रहस्य " जिसे बहुत पसंद किया गया था ।

अब 90 प्रतिशत से अधिक भारतीय आबादी के लगभग 1400 स्थलीय ट्रांसमीटरों के नेटवर्क के माध्यम से (डीडी नेशनल) दूरदर्शन का लिंक प्राप्त कर सकते हैं और आज 46 दूरदर्शन स्टूडियो आज टीवी कार्यक्रमों का निर्माण कर रहे है। पर आज समय बदल गया है साथ ही दूरदर्शन का चेहरा भी बदल गया है । आज मालगुडी डेज़ , भारत एक खोज , देख भाई देख , रजनी और सुरभि जैसे सीरियल न जाने कहा खो से गए हैं। कभी भारतीय समाज और संस्कृति का दर्पण दूरदर्शन भी कहीं भागती हुई जिंदगी के साथ आधुनिकता की दौड़ मे खो गया है ।

अंत मे मैं अपने इस लेख के लिए मेरी बहन ज्योति का शुक्रिया अदा करना चाहूँगा की उसके द्वारा forward की हुई मेल ने मुझे आप लोगों को मेरी दूरदर्शन से जुड़ी हुई कुछ जानकारी और मेरा दूरदर्शन के प्रति प्यार को बाटने का प्रोत्साहन दिया ।
मेरा आखिरी धन्यवाद वर्तिका अवस्थी को जाता है चूँकि मेरी मेल इन्बोक्स मे जो मेल है वो मुझे यही जानकारी देता है कि ज्योति को ये मेल फॉरवर्ड करने वाली उसकी दोस्त वर्तिका ही है ।

मैं आप दोनों से बिना पूछे हुए आपके के द्वारा भेजी गई फोटोग्राफ्स का भी इस्तेमाल कर रहा हूँ और उम्मीद करता हूँ कि आप लोग ऐसी जी मेल मुझे भेजते रहेंगे धन्यवाद्।

मनीष त्रिपाठी







Thursday, October 9, 2008

इंदिरा जी राजनितिक जीवन परिचय मेरी नज़र मे

मैं स्वर्गीय इंदिरा जी से बहुत ज़्यादा प्रभावित हूँ । भारत को आज भी उनके जैसे प्रतिभाशाली नेता की ज़रूरत है । जितना भी इतिहास मुझे पता हिया उसके अनुसार सन्१९५९ में इंदिरा जी चौथी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की महिला ( चुनाव द्वारा ) प्रेजिडेंट बनी , बाद में प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री के कार्यकाल में सन् १९६४ में भारत देश की सूचना और प्रसारण मंत्री बनी । मंत्री की तौर पर उन्होंने सस्ते रडियो और परिवार नियोजन पर ज़ोर दिया । शास्त्री जी की मृत्यु के उपरांत सन् १९६६ से अगले चुनाव तक इंदिरा जी के रूप में भारत को पहली महिला प्रधानमंत्री मिली। सन् १९६७ के चुनाव में श्रीमती गाँधी जीत कर पहली लोकतान्त्रिक रूप में छनी हुई महिला प्रधान मंत्री बनी । अगले चुनाव में "गरीबी हटाओ"का नारा लेकर वो चुनाव लड़ी और फ़िर से इंदिरा जी को भारत ने आपना प्रधानमंत्री चुना।
जनसंख्या वृद्धि पर नियंत्रण करने के लिए, गांधी एक स्वैच्छिक नसबंदी कार्यक्रम लागू किया। परिणामस्वरूप, शत्रुओं ने उनकी और उसके प्रशासन की आलोचना की। अपनी सरकार को बचाने और दंगो को रोकने के लिए इंदिरा जी ने आपातकाल की घोषणा की जिसमे जनता की स्वतंत्रता को सीमित किया .इसके अलावा, वह मुख्य विपक्षी नेताओं की गिरफ्तारी के आदेश दिए। १९७७ में देशने उनके खिलाफ मतदान किया पर उन्होने पुनः 1980 में प्रधानमंत्री के रूप भारतीय राजनीती में दमदार उपस्थिति दर्ज की ।

अक्तूबर 31, 1984, इंदिरा गांधी के सिख अंगरक्षकों उसकी हत्या की । वे अमृतसर के स्वर्ण मंदिर कांड का बदला ले रहे थे पर इस बात से अनजान थे की वो भारत को एक बेहतरीन प्रधानमंत्री से वंचित कर रहे है ।

प्रधानमंत्री के रूप में,इंदिरा गांधी जी ने भारतीयों के जीवन में सुधार करने की कोशिश की. उसके मुख्य उपलब्धियों पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध में जीत और सोवियत संघ के साथ संबंधों में सुधार रहे थे। इसके अलावा 1971 में, भारत अंतरिक्ष में अपना पहला उपग्रह भेजा है। इंदिरा जी ने विश्व परिदृश्य में भारत को एक तेज़ी से बढती हुए अर्थवयवस्था के रूप में पेश किया ।
इंदिरा जी आपके द्वारा किए गए कार्य ने देश को नई उचाईयां प्रदान की है , हम सदा आपके आभारी रहेंगे।

जब तक सूरज चाँद रहेगा इंदिरा तेरा नाम रहेगा ॥

मेरा देश महान



है मेरा देश सबसे महान
ये है दुनिया की शान ।
शान्ति और समृधि का प्रतीक
भारत हर कहीं की संस्कृति का मीत
दुनिया भर से सैलानी आते है
हमारे देश के गुण गाते है
पर आज है परिदृश्य बदला
देश में हैं जनता को खतरा फ़िर कैसे .......... है
मेरा देश सबसे महान
ये है दुनिया की शान ।
इस बात का जवाब है हमे देना प्यार मोहब्बत से है
कुछ करना हम प्रगति दिशा में तेजी से जायेंगे
और हर दुश्मन को दिखायेंगे
हम अब भी सोने की चिडिया को रखते है
तुम जिसे कभी न मार पाओगे
हम फ़िर बताएँगे की ............
है मेरा देश सबसे महान
ये है दुनिया की शान ।